विचार मंथन
(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)
विदेश के मनीषियों ने, बड़े-बड़े विद्वानों ने, अच्छे-खासे 'इंटेलिजेंट' (बुद्धिमान) कहलाने वाले लोगों ने यह स्वीकार किया कि भारत का तत्त्व ज्ञान, फिलासफी, भारतीय दर्शन समझ में तो आ जाता है कि एक ही सत्ता है, अनेक अंतःकरणों में और अनेक वस्तु-व्यक्तियों में वह एक ही परमात्मा है। उसके अनेक-अनेक नाम और रूप हैं। यह समझ में तो आ जाता है, 'बट' (लेकिन).....
लेकिन हिन्दुस्तानीयों के पास यह कौन सा मेथड (पद्धति, युक्ति) है कि जो सर्वव्यापक है, सर्वेश्वर है, परमेश्वर है, उसको नन्हा-मुन्ना बच्चा बना देते हैं, छछिया पर नाच नचा देते हैं। 'हाय सीते !... हाय लखन !....' रोने की लीला करवा देते हैं। उसे हँसता, खेलता, रोता, गाता, नाचता, गौ चराता बना देते हैं। वे परात्पर ब्रह्म को बच्चा कैसे बना देते हैं? उसको सखा कैसे बना देते हैं? रथ को चलाने वाला कैसे बना देते हैं? जो परात्पर ब्रह्म है वह अर्जुन का रथ चला रहा है। जो कंस के कारागार में चतुर्भुज रूप में प्रकट होता है और देवकी व वसुदेव बोलते हैं कि आपने तो बालक होकर आने का वचन दिया था महाराज। इस रूप में हम आपको लाड़-प्यार कैसे करेंगे? हमें पुत्र-स्नेह कैसे मिलेगा? तब देखते-देखते वह 'उँवाँ.... उँवाँ... उवाँ....' करता हुआ शिशु बन जाता है। हिन्दुस्तानियों के पास यह कौन सा मेथड है? व्हाट इज़ इट? विदेशी दार्शनिकों के दिल में यह गुत्थी बड़ी गहरी है। हिन्दुस्तानयों का तत्त्वज्ञान, शास्त्र, उपनिषद्, वेद-वेद.... आल इज़ ओ.के., ठीक है, हम समझ लेते हैं बुद्धिपूर्वक, लेकिन यह उनके पास क्या है कि परमात्मा उनके यहाँ प्रकट हो जाता है। वह उनके साथ नाचता है, उनके हाथ का खाता है, उनके साथ मिल-जुल के गायें चराता है। यह क्या मेथड है?
बताओ हिन्दुस्तानी !
अयोध्या का राज्य करते-करते स्वधाम-गमन का समय होता है तो भगवान रामजी जाने की लीला करते हैं और बोलते हैं- 'जिसको चलना है चलो।' सब सरयू में प्रवेश करते हैं। हजारों लाखों अयोध्यावासी सरयू में प्रविष्ट होते हैं और फिर साकेत धाम में पहुँच जाते हैं। यह कौन सा मेथड होगा? विदशी चिंतक सिर खुजलाते रहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण कभी द्विभुजी हो जाते हैं, कभी चतुर्भुजी हो जाते हैं और अर्जुन को विश्वरूप का दर्शन करा देते हैं। छछिया भर छाछ पर नाच लेते हैं। राक्षसी आदि का कल्याण भी कर देते हैं, पूतना का विषपान भी कर लेते हैं और उसको स्वधाम भेज देते हैं। तो वे परात्पर परब्रह्म सारी सृष्टि का आधार सत्-चित्-आनंद हैं और बालक हो जाते हैं। किसी का मा बढ़ाने के लिए विश्व का स्वामी रण छोड़े से भागने को भी तैयार हो जाता है। वह यज्ञ में साधु-संतों की आवभगत करके उनके चरण धोता है, उनकी झूठी पत्तलें उठाता है। यह कौन सी शक्ति है? हिन्दुस्तानियों के पास यह कौन-सा मेथड है कि भगवान को साकार बना देते हैं? अपने साथ बातचीत करने वाला, अपने को छुने वाला, बोलने वाला, खाने वाला, लेने वाला, अरे ! अपना चेला भी बना लेते हैं।
सांदीपनी कोई तेज-तर्रार विद्यार्थी नहीं थे लेकिन ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति.... एकटक देखते हुए गुरुजी को सुनते और आध्यात्मिक दृष्टि से गुरुत्व को देखते थे। गुरुजी संसार से जाते जाते बोलेः "बेटा ! ऐहिक विद्या में तो तू ठीक-ठीक रहा लेकिन परम विद्या में तेरी रूचि रही। मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि जो निर्गुण, निराकार, सच्चिदानंद प्रेमाभक्ति और 'गीता' के ज्ञान का विस्तार करेगा यह भगवान श्रीकृष्ण तेरा चेला बनेगा।"
तो अपने चेले को भगवान का गुरु बना दिया अर्थात् भगवान के दादागुरु बन जाते हैं ! यह कौन-सा मेथड है?
'पार्लमैंट ऑफ वर्ल्ड रीलिजियन्स' में यह सवाल मुझसे पूछा गया था कि "इंडिया में भगवान के अवतार क्यों होते हैं?"
मैंने पूछाः "जहाँ बारिश होती है वहाँ वृक्ष क्यों होते हैं और जहाँ वृक्ष होते हैं वहाँ बारिश क्यों होती है?"
बोलेः "यह कुदरत का नियम है।"
मैंने कहाः "ऐसे ही भगवान शिवजी का कैलास जल से प्रकट हुआ और फिर शिवजी मत्स्येन्द्रनाथजी और अन्य संतो को आत्मप्रसाद का प्रसार करने के लिए नियुक्त किया। तो जहाँ भक्त होते हैं वहाँ भगवान आ जाते हैं और जहा भगवान होते हैं वहाँ भक्त आ जाते हैं। जहाँ हरियाली होती है वहाँ बरसात होती है और जहाँ बरसात होती है वहाँ हरियाली होती है।"
यह मेथड-वेथड कुछ नहीं है। यहाँ की भूमि पर भगवद् अवतार हुए शिवजी की परम्परा से, भगवान नारायण और ऋषियों की परम्परा से। यहाँ नश्वर शरीर की आसक्ति कम करके भाव और प्रेम विकसित हो ऐसी उपासना और साधना पद्धति है। तो जहाँ भाव और प्रेम होता है वहाँ महाराज ! पशु भी वश हो जाते हैं, पक्षी भी वश हो जाते हैं, मनुष्य भी वश हो जाते हैं और पत्थर भी पिघल हो जाते हैं तथा पत्थर से देव भी प्रकट हो जाते हैं। भक्तों की भावना और प्रेम से विश्वनियंता भी नन्हा-मुन्ना बालक होकर लीला करने को तैयार हो जाता है। मेथड-वेथड कुछ नहीं है।
हिन्दू धर्म कि विशेषता है कि उसकी मंत्रशक्ति, उपासना की पद्धति अपने में महान विशेषताएँ सँजोये हुए हैं। कई प्रकार के योग – लय योग, कुंडलिनी योग, नावानुसंधान योग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग, टंक विद्या, आत्मविद्या, कर्मविद्या, भगवद् विद्या..... अब कहाँ तक विस्तार करें? इस हिन्दू धर्म की महिमा अपंरपार है। हिन्दू धर्म की पद्धति से साधन भजन करे तो मनुष्य में छुपी अलौकिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। अभी तो केवल लाखवाँ हिस्सा पद्धति-अनुसार ही इन्द्रिय-संयम और ध्यानयोग का आश्रय लिया था।
भगवान व्यापक है। जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसे चाहे अपने प्रेमी भक्त के, भावुक भक्त के आगे अपनी लीला करने के लिए, प्रेरणा देने के लिए प्रकट हो सकता है। भगवान के अवतार अर्थात् केवल कृष्ण अवतार हुआ, राम अवतार हुआ ऐसा मत समझो, भगवान के नित्य, नैमित्तक, प्रेरणा, आवेश और प्रवेश अवतार होते रहते हैं। जैसे जब दुःशासन द्रौपदी का वस्त्र खींचने लगा तब द्रौपदी खूब विह्वल हो गयी और उसने भगवान को पुकाराः 'द्वारिकाधीश !' 'द्वारिका' बोली तब तक तो भगवान द्वारिका में थे और 'धीश' बोली तो उनका साड़ी में प्रवेश अवतार हुआ। हाथियों का बल रखने वाला दुःशासन साड़ी खींचते-खींचते थक गया। बोलाः 'नारी है कि साड़ी है!' नहीं, तेरा बाप प्रवेश अवतार है ! ऐसे ही प्रह्लाद को सताया गया और भगवान नरसिंह का आवेश अवतार हुआ। बढ़िया काम करते हैं तो अंतर्यामी प्रभु आपको प्रेरणा देते हैं कि यह उचित है, यह अनुचित है। यह करो, यह न करो। यह प्रेरणा अवतार है।
भारतीय संस्कृति में गीता, गाय, तुलसी, पीपल, भगवन्नाम और बीजमंत्र संयुक्त ऋषि-मुनियों की ऐसी-ऐसी साधना की सीख है कि वह भले वहाँ के विद्वानों की समझ में नहीं आती, लेकिन शबरी भीलन के जीवन में स्वाभाविक राम की प्यास है तो वह राम जी को झूठे बेर खिलाने सफल हो जाती है। मीराबाई कोई मेथड-वेथड नहीं जानती लेकिन मीरा की प्रेमाभक्ति ठाकुरजी को प्रकट कर देती है। "हूँ तो तुर्कानी लेकिन हिन्द्वानी कहलाऊँगी..." कहने वाली ताज श्री कृष्ण को प्रकट कर लेती है। रहीम खानसाना भक्ति में ऐसे तल्लीन होते हैं कि श्रीकृष्ण बालक रूप में आते हैं और फिर प्रकट होकर मुरलीधर रूप में भी दर्शन देते हैं। ऐसे ही रहिदास जी कोई नया मेथड नहीं जानते थे लेकिन जिसमें वे चमड़ा भिगोते थे, उनकी उस कठौती का पानी भी कितना दिव्य प्रभाव रखता था!
एक बार गोरखनाथ जी उनके पास आये और बोलेः "अलख निरंजन ! प्यास बुझानी है, फकीर को पानी दे दो।"
रहिदास जी ने उस कठौती से पानी दे दिया। गोरखनाथजी हिचकिचाये कि यह चमड़े का पानी अशुद्ध तो है लेकिन रहिदास जी जैसे संत का दिया हुआ है। न गिराया न पीया, आखिर संत कबीरजी को आकर कह दिया। कबीर जी की बेटी कमाली बैठी थी। वह बोलीः "महाराज ! मुझे दे दीजिए।" कमाली वह पानी पी गयी और उसकी दिव्य शक्ति जागृत हो गयी। उसका विवाह मुलतान में हो गया और वह ससुराल चली गयी। उसके जीवन में चमत्कार होने लगे तो गोरखनाथजी नतमस्तक हो गये। फिर आये रहिदास जी के पास तो रविदास जी बोलेः "वह पानी तो मुलतान गया।"
तात्पर्य, कोई बड़ा मेथड-वेथड नहीं है। आप प्रेम किये बिना नहीं रह सकते लेकिन जब नश्वर चीजों को प्रेम करते हैं तो मोह हो जाता है और शाश्वत परमात्मा को प्रेम करते हैं तो वह प्रेम परमात्मा हो जाता है।
जहाँ अपनत्व होता है वहाँ प्रेम होता है। कुत्ता कई जूते-चप्पलों पर पिचकारी लगाता है, कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अपने जूते-चप्पल पर लगाने लगे तो उसे भगा देते हैं क्योंकि जूता अपना है। अपना है तो प्यारा हो गया। ऐसे ही भारतवासी बोलते हैं- "भगवान मेरे हैं, भगवान गोविन्द है, भगवान गोपाल है, भगवान अच्युत हैं, भगवान दामोदर हैं, माता की गहराई में मेरे प्रभु, पिता की गहराई में प्रभु... 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव...' इस प्रकार की प्रेमाभक्ति और दृढ़भावना ही निराकार ब्रह्म को साकार, नाचने-खेलने और हँसने-रोने वाला बना देती है। अहं भक्त पराधीनो... भक्तिभाव से भगवान भक्त के अधीन हो जाता है। जैसे बच्चे के प्रेम से माँ-बाप, दादा-दादी, पड़ोसी – सभी वश हो जाते हैं।
प्रेम न खेतों उपजे, प्रेम न हाट विकाय।
राजा चाहो प्रजा चाहो, अहं दिये ले जाय।।
भगवान के आगे दण्डवत प्रणाम करते हैं अहं मिटाने के लिए। नहीं तो भगवान को क्या जरूरत है कि हम लम्बे पड़ें? ज्यों-ज्यों अहं गलता है और भगवान की महत्ता व अपने शरीर की नश्वरता समझ में आती है तथा भगवान की करूणा-कृपा स्वीकार होने लगती है, त्यों-त्यों भगवान का सदभाव, भगवान का प्रेम, भगवान का आश्रय प्रकट होने लगता है।
चित्त जितना शांत रहता है और भगवान को अपना मानता है, उतनी ही चित्त में प्रेम, भाव और भगवत्सत्ता की सघनता होती है। उस प्रेम और भाव के बल से परात्पर परब्रह्म लीला करने को अवतरित हो जाता है, दूसरा कोई मेथड-वेथड नहीं है।
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